आशान नहीं है जिन्दगी,
कल्पना की उड़ानों सी.
हर वक़्त इम्तहान लेती है,
लहू लुहान कर ये जिंदगी.
इन्तहां तो तब है, जब सोचना भी हो मुश्किल,
मुश्किलों का कारवां बना देती है जिंदगी.
हस्ते मुस्कुराते पल, हो कोई ये याद नहीं,
अब तो हर पल ही, रुला जाती है ये जिन्दगी.
जब कहने को हो बहुत कुछ, पर जुबाँ हो खामोश,
न जाने ऐसे कितने दिन, दिखा जाती है ये जिन्दगी.
जिंदगी ए जिंदगी, जिंदगी ऐ जिंदगी.
शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)