शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

जीवन क्या हो जीवन

जीवन क्या हो जीवन,
गर न हो इस में आशाएं.
विलाशिता की महत्व ही क्या,
जब न सहनी पड़ी हों विपदाएं.
--
जब पा ही लिया है तुम ने सब कुछ,
फिर मन में ये बेचैनी क्यूँ
जब दुनियां के तुम हो ना सके
दुनियां क्यूँ पूछे कौन हो तुम.
--
सुख तो तब था, जब तुम रहते
माता-पिता के चरणों में
वृद्धों की तुम करते सेवा
रहते उनके सरणों में.
--
सुनो सिंह, अभी भी है वक़्त
आ लौट चलो उन गलिओं में
आलिन्गंबध तुम्हें करने को
अपने हों जिन गलिओं में.
--
या फिर तुम अब वही करो
जो हर सक्श यहाँ कर जाता है
मिटा अपनी ओ हस्ती
बंजारा सा रह्जाता है.
बंजारा सा रह्जाता है.