डूब मरो ऐ भारतवासी, तूम अब हृदयहीन हुए,
छोड़ सौर्ध का अमृत, द्वेष के शौकीन हुए.
अच्छे कर्म अब कहाँ, यहाँ किसी को भाता है,
हर दिन एक नया कुकर्म, समाचारों मे छा जाता है.
मुंबई की पीड़ा, अब भी दिल मे भारी है,
अब आपस मे लड़ने की, तेरी मेरी बारी है.
बिहार, माह्रास्ट अब, पकिश्तान ऑर चीन हुए
डूब मरो ऐ भारतवासी, तूम अब हृदयहीन हुए.
कहाँ गए अब वो युवा, जो ओरों के काम आयें,
निःस्वार्थ और निश्छलता से, नित देश पे जो मिट जाएँ.
भार्स्तम से भी भ्रस्ट, अब वो हमारे नेता हैं,
लोकतंत्र के नाटक में, सब मंजे हुए अभिनेता हैं.
ये जात पात के बंधन, अब भी हम पे भारी है,
भरे पुरे समाज में अब भी, हर नारी बेचारी है.
सिड़ी चढ़े सफलता की, पर सोच पाषाण-कालीन हुए,
डूब मरो ऐ भारतवासी, तूम अब हृदयहीन हुए.
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
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wah wah
जवाब देंहटाएंkya baat hai sirji, ye to bataiye ki kab likhate hai kavitayein..
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